s Swami Keshwanand Samiti Charitable Trust

एक आदर्श साधु

स्वामी केशवानन्द ऐसे अनोखे साधु थे जिन्होंने आत्म-कल्याण या मोक्ष-प्राप्ति के स्वार्थमय पथ पर चलने की अपेक्षा आजीवन ब्रह्मचारी रहते हुए पर-सेवा और लोक-कल्याण में लगे रहना श्रेयस्कर समझा। उसी को उन्होेंने पूजा-पाठ, तप-जप और ध्यान-समाधि बनाया। उस खाली हाथ फकीर ने जन-सहयोग से करोड़ों रूपए की शिक्षा-संस्थाएं खड़ी कर दीं और 64 वर्ष के लोक-सेवा-काल में जन-जागरण का जो विशाल कार्य किया उसका मूल्य तो रूपयों में आंका ही नहीं जा सकता। राजस्थान की ओर से चुने जाकर सन् 1952 से 1964 तक वे दो बार संसद सदस्य (राज्य सभा) रहे और उस काल में उन्हें जो भत्ता मिला उसे उन्होंने ग्रामोत्थान विद्यापीठ के संग्रहालय के विस्तार में लगा दिया। स्वतंत्रता-सेनानी होने के नाते उन्होंने कभी न किसी भत्ते की मांग की और न ही किसी ताम्रपत्र की चाह रखी। वे इतने निरभिमान थे कि स्वतंत्रता-संग्राम में अपनी भागीदारी को वे देश के प्रति अपने कर्त्तव्य का पालन मात्र कहते थे। अपनी चिरकालिक समाज-सेवा के लिए वे कहा करते थे कि मैंने तो लोगों से लेकर लोगों के ही हित में लगाया है। इसमें मेरा अपना क्या है? वस्तुतः वे निष्काम कर्मयोगी थे। यद्यपि स्वामी केशवानन्द ने स्व-प्रचार और अपनी प्रशंसा को कभी पसन्द नहीं किया फिर भी हिन्दी साहित्य सम्मेलन प्रयाग और राष्ट्रभाषा प्रचार समिति वर्धा ने उन्हें राष्ट्र-भाषा हिन्दी की सेवा के लिए क्रमशः ”साहित्य वाचस्पति” और ‘‘राष्ट्रभाषा गौरव’’ की उपाधियों से विभूषित किया। सिख संगत ने उन्हें सन् 1956 में पवित्र हरि-मंदिर साहिब अमृतसर के उन स्वर्ण-पत्रों के जीर्णोद्धार -उत्सव का मुख्य अतिथि बनाकर सम्मानित किया, जिन्हें महाराजा रणजीत सिंह ने सन् 1801 में स्वर्ण मन्दिर को भेंट किया था। इलाके के श्रद्धालु लोगों द्वारा प्रसिद्ध पत्रकार और संसद सदस्य डा0 बनारसीदास चतुर्वेदी और इतिहासकार ठाकुर देशराज के संपादकत्व में तैयार करवाया गया ‘‘स्वामी केशवानन्द अभिनन्दन ग्रन्थ’’ राजस्थान के मुख्यमंत्री श्री मोहनलाल सुखाड़िया द्वारा स्वामी जी को एक विशाल सम्मेलन में 9 मार्च 1958 को भेंट किया गया। पुरातत्व विशेषज्ञ डा0 वासुदेवशरण अग्रवाल स्वामी जी का संग्रहालय देखने सन् 1948 में ग्रामोत्थान विद्यापीठ में आए। सन् 1953 में रेलवे मंत्री श्री लालबहादुर शास्त्री, सन् 1957 में प्रसिद्ध हिन्दी-सेवी राजर्षि पुरूषोतमदास टण्डन और सन 1959 में प्रधानमंत्री श्री जवाहरलाल नेहरू, श्रीमती इन्दिरा गांधी और आचार्य विनोबा भावे संगरिया पधारे और ग्रामोत्थान विद्यापीठ की शैक्षिक प्रवृतियों को देखकर अत्यन्त प्रभावित हुए। अपनी उसी यात्रा का स्मरण करते हुए प्रधानमंत्री श्रीमती इन्दिरा गांधी ने स्वामी जी की पुण्य-तिथि (13 सितम्बर) पर प्रकाशित होने वाली ‘‘स्मारिका’’ के लिए दिए गए अपने 6 सितम्बर, 1984 के सन्देश में लिखा था, ‘‘स्वामी केशवानन्द जी स्वतंत्रता के एक सजग प्रहरी थे। साथ ही उन्होंने राजस्थान, हरियाणा और पंजाब में शिक्षा, महिला कल्याण और दलित वर्ग के उत्थान के लिए सराहनीय कार्य किया। संगरिया में ग्रामोत्थान विद्यापीठ ग्रामीण क्षेत्र में उनके कार्यों का एक जीवित स्मारक है।’’

चलते-चलते महाप्रयाण:-

स्वामी केशवानन्द जी कहा करते थे कि मेरा जीवन लोक-सेवा के लिए है, मैं कभी किसी से अपनी सेवा नहीं कराना चाहता, मैंने ंचारपाई पर पड़कर नहीं मरना है। सन् 1968 में बीमारी में उन्होंने अपना एक फेफड़ा खो दिया। थोड़ा स्वस्थ होने पर डाक्टरों ने उन्हें आराम करने की सलाह दी किन्तु संगरिया आते ही वे संस्था के काम में जुट गये। मौत से उन्होंने कभी जरा भी भय नही माना। सितम्बर 1972 के आरम्भ में संस्था के लिए दान-संग्रह करने वे मद्रास (चैन्नई) पहुंचे। वहां से लौटते समय वे देहली के तालकटोरा मार्ग पर चलते -चलते 13 सितम्बर 1972 को महाप्रयाण कर गए।